मंज़िल अब तक मिली नहीं है
उषा की लाली सजी नहीं है, तमस की अग्नि बुझी नहीं है
दूर बहुत हैं अभी उजाले मंज़िल अब तक मिली नहीं है
झंझानिल से जा टकराना, हारे मन में जीत नहीं है
नीची लहरों से उठता वो जीवन का संगीत नहीं है
आधी किस्मत से सिंचित हैं पूरी मेहनत की वो राहें
टूटे मन को जोड़ सके जो वो दुनिया की रीत नहीं हैं
अनथक राहों में चलता जा लहरें भी विपरीत नहीं है
मीठे शब्दों से जो खेले उधड़े मन का मीत नहीं है
प्रलय सेज पर बिछ जाना आशा की लौ अभी बुझी नहीं है
देख गगन! सूरज की लाली अस्ताचल में छुपी नहीं है
अर्चि