Wednesday 20 March 2019

ओ फगुनिया!



वो फागुन की उजली रातें थाप नगाड़े सुनती रातें
अब होली की बिसरी यादें वो सखियों संग बुनती बातें

महुआ झरते झरते पत्ते गीत फगुनिया गाती यादें
बाग-बाग बौरायी अमियाँ गली मोहल्ला रंगती यादें

होश संभाले हवा हो गयी करती अब रूमानी बातें
रंग बदलती चालें चलती जितने चेहरे उतनी बातें

टेसू की वो साँझ सिंदूरी पीली लाल गुलाबी यादें
फिर बचपन में खींच रही हैं कुछ पक्की कुछ कच्ची यादें

मन व्याकुल है तन व्याकुल है मंथर मंथर पास बुलाएँ
पर तन की अपनी सीमायें और मन की अपनी रेखाएं

चैत पुरबिया बुला रही है गूंज-गूंज किलकारी यादें
बुढा बरगद हवा बसन्ती चिड़ियों सी चह्काती बातें

लाल रंग दे मन में मुझको दूर सही तु रंग ले मुझको
जैसे राधा कृष्ण को रंग दे अबकी बिखर न पाए यादें

तन जो भीगा मन ना भीगा अब तो मन को खलती यादें
अब की इतनी गहरी रंग दे मन से उतर ना पाए यादें 

Friday 8 March 2019

सशक्ति की अभिव्यक्ति






जो मेरी सशक्ति की अनदेखी करते हो,
तो फिर क्यूँ मेरी अभिव्यक्ति किया करते हो?

लगता है मुझे इंसा से कुछ परे समझते हो,
इसलिए मुझे बरसों-बरस लिखा करते हो!

जब-जब देवियों की पूजा करते हो,
तब-तब मेरी अस्मत लूटा करते हो!

जब मेरी मांग की सिन्दूर में अपना अस्तित्व खोजा करते हो,
तब अपने पुरुषसत्ता का विरोधाभास तय किया करते हो !

जब मेरी ज़रा सी अदा पर इतना गिरा करते हो,
तो क्या खाक अपनी बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन किया करते हो!

जो अपनी औरत को घर में सहेजा करते हो,
फिर क्यूँ दूसरी औरतों पर आँखें तरेरा करते हो?

जब मुझसे नज़रें झूका चलने कहते हो,
फिर क्यूँ अपनी नज़रों से मेरे वक्षों को नापा करते हो?

मैं नर्मदा सी अनछुई,
तुम क्यूँ घाट-घाट फिरा करते हो?

लेकर ज़माने की तल्खियाँ,
क्यूँ मुझमें पाप धोया करते हो?

विधवा की सफेदी में भी,
रंगीनियत किया करते हो!

जब मनाते हो ये दिवस ये वार,
तब स्त्री को किस तराजू में तोला करते हो?

Saturday 2 March 2019

मैं



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मैं

हाँ, अपनी गलतियों से ही ज़िदा हूँ मैं ,
अपने हौसलों से उड़ता एक परिंदा हूँ मैं !

अक्सर ज़मीं पर रहकर आसमान देखता हूँ मैं,
आसमान कब मुझे देखेगा यही एक-एक दिन गिनता हूँ मैं !

भीड़ भरे रास्ते  में मेरा चलना मुमकिन नहीं,
इसलिए अपना रास्ता अलग चुनता हूँ मैं !

चोट देती अक्सर औरों की बातें,
इसलिए अपने दिल की बातें गौर से सुनता हूँ मैं !

मैं तुम नहीं, तुम मैं नहीं,
 इसलिए तुमसा कभी बनता नहीं हूँ मैं !

मन के ज़ख्मों की हल्दी नहीं होती,
यही मन ही मन में कहता हूँ मैं !

मन के हारे हैं, मन के जीते जीत,
यही बात सुनकर उलझन से सुलझता  हूँ मैं !

दफ़न ना कर मुझे डायरी के पिछले पन्नों में,
एक व्यक्तित्व हूँ मैं, कोई किस्सा नहीं हूँ मैं !

साधारण मनुष्य ही गढ़ते हैं इतिहास,
मुट्ठीभर असाधारण लोगों का हिस्सा नहीं हूँ मैं !