Wednesday 9 August 2017

संवेदना



छोटा हूँ, पर छोटा होकर भी बड़ा हूँ. 
हारता हूँ, पर हारकर जीत जाता हूँ.
सुनता हूँ, पर सुनकर भूल जाता हूँ. 
धोखे खाता हूँ, पर फिर भी साथ देता हूँ.
गिरता हूँ, पर गिरकर फिर उठ जाता हूँ. 
जानता हूँ, पर जानकर अनजान बन जाता हूँ. 
बिखरता हूँ, पर बिखरकर सम्भल जाता हूँ. 
पढता हूँ, पर पढ़कर सीख लेता हूँ. 
लोग बहकाते ,पर अपनी समझ रखता हूँ.
ऊपर पहुँचता हूँ, पर ज़मीन की नींव रखता हूँ. 
क्योंकि मैं  इंसान हूँ, इंसानियत का पाठ पढता हूँ.
वह मनुष्य हूँ, जो मनुष्य के काम आता हूँ.
दुआ देता हूँ दुआओं का असर रखता हूँ.