Tuesday 1 May 2018

मैं कौन?

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टिक - टिक करती घडी, पसरा हुआ सन्नाटा,
तहज़ीब का लिबास और बेतरतीब सी मैं

ऊंची ईमारत की नींव, दबे हुए एहसास,
सूनी दीवारों पर बोलती तस्वीरें और निरुत्तर सी मैं

आदमी के चेहरे, औपचारिकता के मुखौटे,
पूरा सा शरीर और अधूरी सी मैं

रसोई के कोनों से बर्तनों की आवाज़,
चटकती हुयी लकड़ियाँ और धुएं में उडी हुयी सी मैं

धूल में लिपटे पुराने अखबारों की जिल्द,
फड़फड़ाते किताब के पन्ने और अनपढ़ सी मैं

पकवानों की खुशबू, चाशनी के तार,
घुली हुयी मिठास और फीकी सी मैं

अरमानों के तेल, डूबी हुयी बाती,
जलती हुयी लौ और बुझी हुयी सी मैं