नभ में छाई लाली जैसी
हरे पेड़ की डाली माँ
तपते सूरज की गर्मी और
उषा की उजियाली माँ
वर्षा की रूई फुहारों जैसी
धीरे सही बरसती माँ
काले बादल और घटा बन
कभी बरसती मेरी माँ
होम हवन और अनुष्ठान सी
शंखनाद है मेरी माँ
उसमें ही गीता कुरान सब
मंदिर मस्जिद मेरी माँ
चिमटा बेलन हंडा लेकर
तेज़ आंच पर जलती माँ
चूल्हे के लकड़ी के जैसी
भीतर रोज़ सुलगती माँ
नये धान की बाली जैसी
खेतों की हरियाली माँ
दूर पहाड़ी दुर्गम रस्ता
मीलों तय करती है माँ
गीली मिटटी नयी सुराही
सुघर चाक पर गढ़ती माँ
तेज़ धुप में पक्का करती
पल-पल मंजिल बढ़ती माँ
हाथ पकड़कर मीलों चलती
रास्ता नहीं भटकती माँ
घोर अँधेरे राह दिखाती
अथक परिश्रम करती माँ
रोज़ पकाती मुझे खिलाती
पेट काटती रहती माँ
भूख सताती नहीं बताती
खुद में खुद को ढंकती माँ
कर्म भूमि पर चलती रहती
सब कुछ चुपकर सहती माँ
मेहनत करके आगे बढ़ने
बातें कहती मेरी माँ