Thursday 16 November 2017

रात की एक बात



बात चल पड़ी है कि, बिगड़ी बात कब बनेगी?
काली स्याह में डूबी ये अँधेरी रात कब गुजरेगी?

मीलों फैला है सन्नाटा, के चिड़ियों की चहचहाहट कब गूंजेगी?
इस घोर अन्धकार पर उषा की बयार कब गुजरेगी?

दीये की लौ तो बुझ गयी, जठर की आग कब बुझेगी?
पेट बांध कर सोते हुए ना जाने ये रात कब गुजरेगी?

ठिठुरती ठण्ड की रातें जाने करवट कब बदलेंगी?
सुनहरे धूप के मंज़र को अब आंखें भी तरसेंगी?

हर रोज़ यादों की बारात निकलेगी,
जैसे आज निर्मम चाँद के बाद कल सूरज की आग निकलेगी?

अमावास के बाद पूनम की सौगात कब मिलेगी?
मर मर कर जीने के बाद ज़िन्दगी की राह कब निकलेगी ?

कब तक नज़्म गीत की महफ़िल को भटकेगी?
कब तक राहें निर्गम मंजिल को तरसेंगी?

इस सूर्ख आँखों में जाने नींद कब आएगी?
जब ख्वाब के मुकम्मल होने की तारीख निकलेगी?





Sunday 22 October 2017

रोली




निश्छल, कोमल, अपरिचित,
मुझसे अनजान अचीन्ही,
परंतु तुमसे बरबस मुलाकात
उम्र के उस मोड़ पर|
उस मोड़ से मिलने का सिलसिला चला आ रहा था...

अल्हड बचपन से मुक्त होकर पाया,
तुम्हे बहुत ही करीब दिल के,
माना इश्वर प्रदत्त सच्चे मित्र के रूप में|
मित्रता प्रगाढ़ होती चली गयी.....

पर हाय रे भाग्य!
किया बिछोह दो मित्रों का,
समय गुज़रता गया, किन्तु यादें रह गयी|
तब पत्र ने जोड़े रखा मित्र से....

विश्वास था भाग्य पर,
कि मिलना तो ज़रूर होगा|
साकार हुआ स्वप्न वह,
पूर्ण हुआ विश्वास,
हुआ मित्र से पुनर्मिलन,दिन था वह ख़ास|
(४ जुलाई ,२००१)