Wednesday 31 January 2018

अन्तर्द्वंद




https://trance2verse.files.wordpress.com/2017/12/download.jpg?w=289
पुत्री रत्न का ले उपहार,
सुखद मातृत्व से सरोकार,
कह लक्ष्मी स्वरूपा बार-बार,
सबने पहनाया सहानुभूती का हार |
किलकारी की गूंज में ही सृष्टि सारी,
नन्हे कदमों के आगे सब मुश्किलें हारी,
सब भूल गयी हूँ, मगन हूँ जबसे,
  छोड़ के सारी दुनियादारी |

बिटिया बढ़ रही आँचल में मेरे,
फिर घिर आये अवसाद के घेरे,
चूक न हो सुरक्षा में तेरे,
दूल्हा, दहेज़ और फ़र्ज़ हैं फेरे |
पढ़ लिखकर काबिल बनवाया,
पैरो पर खड़ा होना सिखलाया,
दुनिया मेंआत्मनिर्भर बनाया,
जब क्षणिक सुख का अवसर आया,
तब भाग्य पलटकर बोला हँसता-
"क्षणिक मात्र था मेरा रस्ता
देकर वापस लेने आया हूँ,
जो तुम्हारा था ही नहीं उसे तुमसे लेने आया हूँ"
घडी विदाई की भारी आई,
बिटिया घर छोड़ हो गयी परायी,
घर, नाम, शहर, और छोड़ अस्तित्व,
छोड़कर अधिकार पहना कर्त्तव्य का स्त्रीत्व |
अपेक्षा विहीन, कर्त्तव्य विमुख,
वो अल्हड बचपन, स्वच्छंद, मुक्त,
सब ठहर गया, फिर बदल गया,
व्याकुल मन पाने को क्षणिक सुख |
संस्कार वही आवरण नया,
परिवेश बदल गया सब कुछ,
उम्मीद नयी, अपेक्षाएं नयी,
मिली उपेक्षा जो हुए कर्त्तव्य-विमुख |
नवजीवन लेकन आने पर,
मातृत्व का जब अस्तित्व मिला,
तब बचपन की माँ याद आयी,
इस एहसास से मन विचलित सा हुआ
"धात्री, मैं पुत्री निरर्थक थी !
तेरे ममत्व को समझ न सकी"
इस अनुभव का आलिंगन कर,
महसूस हुआ समवेत स्वर,
बाहर से मौन,भीतर से प्रखर,
करें खीचतान होने को मुखर |
कभी कुचलकर कभी धमकाकर,
अपमान के कडवे घूँट पिलाकर,
आंसूंओं के मोती को बिखराकर,
कभी समाज का दर दिखलाकर,
वही बहेलिया का जाल बिछाकर,
परित्याग करने का दाना डालकर,
आत्मविश्वास को डगमगाकर,
मर्यादा की बेड़ियाँ पहनाकर,
क्या नपुंसकता का परिचय देते हो?
क्यूँ उन्मुक्त होने नहीं देते हो?
प्रकृति ने हम दोनों को संवारा,
नभ मेरा तो आसमान तुम्हारा,
तो क्यूँ इस नभ में काले बदल बनकर आते हो?
सरित प्रवाह में जमी हुयी बर्फ का एहसास क्यूँ करवाते हो?