Sunday 22 October 2017

रोली




निश्छल, कोमल, अपरिचित,
मुझसे अनजान अचीन्ही,
परंतु तुमसे बरबस मुलाकात
उम्र के उस मोड़ पर|
उस मोड़ से मिलने का सिलसिला चला आ रहा था...

अल्हड बचपन से मुक्त होकर पाया,
तुम्हे बहुत ही करीब दिल के,
माना इश्वर प्रदत्त सच्चे मित्र के रूप में|
मित्रता प्रगाढ़ होती चली गयी.....

पर हाय रे भाग्य!
किया बिछोह दो मित्रों का,
समय गुज़रता गया, किन्तु यादें रह गयी|
तब पत्र ने जोड़े रखा मित्र से....

विश्वास था भाग्य पर,
कि मिलना तो ज़रूर होगा|
साकार हुआ स्वप्न वह,
पूर्ण हुआ विश्वास,
हुआ मित्र से पुनर्मिलन,दिन था वह ख़ास|
(४ जुलाई ,२००१)

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